( तर्ज भले चेंदात पछाने हो ० )
बातमें जन्म गमाया है ।
अनुभव क्यों नहि पाया है ? ॥टेक ॥
चित्त शुद्ध कर अपना जिसमों ,
सत्य रमाया है ।
पल पल श्वासा क्यों खोते हो ?
झूठी माया है ।। १ ।।
नश्वर यह जंजाल जगतका ,
संग लगाया है ।
अपनेसे फँस जाता उसमें , '
मेरा ' कहाया है || २ ||
परब्रह्म अविनाशी मेरा ,
घट घट छाया है ।
गुरू - ग्यानसे जागे जो कोइ ,
उसने पाया है ।।३ ।।
कहता तुकड्या बातें ये सब ,
फोल कहाती है ।
जबतक आतम- अनुभव नाही ,
तब सब माती है ॥ ४ ॥
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा